लाभकारी है मशरूम की खेती
मशरूम का उत्पादन कर लघु व सीमांत किसान भी कम लागत और अल्प अवधि में ज्यादा लाभान्वित हो सकते हैं. जिले में एक दशक पूर्व मशरूम की अच्छी उपज होती थी, जो विगत वषरें में नहीं हो रहा था. परंतु महंगी खेती से हलकान किसानों ने फिर उद्यमिता पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.
जिले के कई किसान आज मशरूम उत्पादन की ओर रूख कर चुके हैं और उन्होंने वैज्ञानिकों की सहायता लेकर नयी तकनीक से उत्पादन में जुड़ गये हैं. नयी-नयी फसलों की खेती कर जिले के किसान मॉडल बने तुरकौलिया पश्चिमी पंचायत के नया टोला निवासी सेवानिवृत्त प्रखंड कृषि पदाधिकारी कन्हैया सिंह मशरूम उत्पादन में जुड़े जिले के लघु व सीमांत किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं.
श्री सिंह बताते हैं कि मशरूम के लिए खेती करने की सलाह उन्हें डीडीसी से मिली. जिस पर उन्होंने तकनीक की जानकारी प्राप्त कर मशरूम का प्रत्यक्षण के लिए छोटे से कमरे से उत्पादन करने की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि प्रत्यक्षण के रूप में 100 वर्ग फुट की जगह में किया गया उत्पादन सफल रहा.
उत्पादन की विधि
इस संदर्भ में श्री सिंह बताते हैं कि मशरूम उत्पादन के लिए सितंबर से मार्च तक का माह उपयुक्त होता है, क्योंकि इसके उत्पादन के लिए ठंड का मौसम अनुकूल होता है. उत्पादन के लिए धान के पुआल, कुट्टी या गेहूं के भूसे को 24 घंटे गर्म पानी में डूबा कर उपचारित करने के बाद उसे हल्का सूखा दिया जाता है.
फिर 18 गुणा 24 इंच के पॉलीथिन बैग में भूसे को एक इंच बिछा कर प्रत्येक पॉलीथिन में 100 ग्राम मशरूम बीज बिछा दें. इसके बाद एक इंच मोटा भूसा बिछा कर बीज को ढंक दें और पॉलीथिन का मुंह बंद करते वक्त उसमें 15 से 20 कांटेदार औजार से पॉलीथिन में छिद्र कर दें और उसे कमरे में शेड से लटका दें.
इस विधि को 25-30 दिनों में मशरूम तैयार हो जायेगा. इस विधि में प्रति बैग में रखे 100 ग्राम का बीज से डेढ़ से दो किलो कच्चा मशरूम का उत्पादन हुआ है. वे बताते हैं कि सावधानी से तैयार मशरूम को निकाल, फिर उसे शेड से लटका दें.
इस तरह प्रत्येक 25 दिनों के अंतराल पर तीन बार उत्पादन होगा. उन्होंने बताया कि 100 वर्ग फुट में मशरूम उत्पादन पर करीब पांच हजार की लागत आती है, जबकि तीन बार में प्राप्त उत्पादन से किसान को बाजार मूल्य से 12 हजार रुपये की राशि प्राप्त होती है.
क्या है उपयोग
गौरतलब हो कि मशरूम का उपयोग सब्जी, पकौड़ा, अचार, सूप व मशरूम मिट के रूप में खाने के उपयोग में आता है. साथ ही, मशरूम से मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गठिया, कैंसर आदि की दवा बनाने में भी इसका प्रयोग होता है. मशरूम का प्रयोग खाद्य पदार्थ व दवाओं में प्रयोग होने से बाजार में इसकी अधिक मांग है.
यहां बता दें कि मशरूम का जिक्र पुराने ग्रंथों में भी अच्छे हर्ब के रूप में वर्णन की गयी है. वहीं, सनातन धर्म में ग्रंथ भृगु सहित इसे रोजाना सेवन करने की सलाह दी गयी है. वहीं, हजारों वर्ष पुराने चीन के मेडिसिन डायरेक्टरी में साल में 355 दिन सेवन करने की सलाह देते हुए वेदों में शक्तिशाली औषधि में से मशरूम को ए-वन से श्रेष्ठतम बताया है.