Wednesday, 20 June 2012

Mushroom Cultivation/Farming books in hindi - Free PDF,Ebook,PPT downloads


Mushroom cultivation books in Hindi

 Books Name                                                                Writer
  1. मशरूम उत्पादन तकनीक                                        डॉ. दयाराम  एवं  एम  एन  झा
  2. खुम्बी की खेती                                                     एम  एन  झा, डॉ. दयाराम, ए एन प्रसाद
  3. मशरूम की खेती                                                   डॉ. दयाराम,एवं एम  एन  झा
  4. मशरूम उत्पादन                                                   डॉ. दयाराम
  5. मशरूम उत्पादन एवं उपयोग                                    एस.सी. डे
  6. मशरूम उत्पादन एवं विपणन                                   एन.आइ.आइ.आर
  7. मशरूम की खेती कीजिये और कमाइए                        अनिल कुमार सलिल

Monday, 11 June 2012

Mushroom ki kheti

मशरुम की खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत काम करने वाले भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान बंगलुरू ने घरेलू स्तर पर मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहित करने का एक कार्यक्रम तैयार किया है, जिसके तहत महिलाओं को घर बैठे उपभोग के लिए मशरूम मिलने के अलावा आय अर्जित करने का भी मौक़ा मिलता है. संस्थान की मशरूम प्रयोगशाला ने घरेलू स्तर पर मशरूम पैदा करने की ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे एक वर्ग फुट क्षेत्र में 5.5 फुट की ऊंचाई तक 1.5 से 2 किलोग्राम तक मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है.

    संस्थान ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो गमले रखने वालों और पुष्प प्रेमियों के लिए एक आकर्षण है. मशरूम को प्रोत्साहित करने का एक लाभ यह भी है कि पैदावार के बाद इसकी बची-खुची सामग्री जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जैविक खाद तैयार करने में सहायक सिद्ध होती है.

मशरूम प्रति इकाई क्षेत्र में अधिकतम प्रोटीन देता है. इसे घर के किसी भी नमी वाले कोने में उगाया जा सकता है. महिलाएं इसे किचन गार्डन गतिविधि के रूप में अपना सकती हैं. वैसे भी देश की 50 प्रतिशत महिला आबादी कृषि से जुड़ी गतिविधियों में 90 प्रतिशत का योगदान करती है. घर में ही मशरूम की खेती करना महिलाओं की कार्यशैली और प्रबंध कौशल के सर्वथा अनुकूल है. शाकाहारी परिवारों की प्रोटीन की ज़रूरत को पूरा करने के लिए प्रोटीन से भरपूर मशरूम की खेती घर में बहुत आसानी के साथ की जा सकती है.

घर में मशरूम पैदा करना और परिवार के प्रत्येक सदस्य को 100 ग्राम मशरूम उपलब्ध कराने का मतलब है हृदय रोग के खतरे को कम करना, क्योंकि मशरूम में कोलेस्ट्रोल कम करने की क्षमता है. यह मधुमेह को नियंत्रित करता है और कैंसर रोगियों की कीमोथेरेपी के बाद होने वाले साइड इफेक्ट को भी कम करता है. यही नहीं, यह केलेट्रा लेने वाले एड्‌स रोगियों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे एंटी हाइपरलिपिडेमिक प्रभाव कम होता है. घरेलू स्तर पर मशरूम की खेती के अलावा संस्थान द्वारा तैयार की गई व्यवसायिक मशरूम उत्पादन तकनीक के ज़रिए ओएस्टर, बटन, मिल्की, पैडी स्ट्रा, शिटेक और रेशी आदि किस्मों के मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है. दैनिक उपभोग के लिए पैदा की जाने वाली इन क़िस्मों के अलावा महिलाओं के सामने मशरूम का बीज तैयार करने का वैकल्पिक व्यवसाय भी है, क्योंकि बीज की कमी के कारण मशरूम का उत्पादन नहीं बढ़ पाता है और इसकी क़ीमत भी अधिक रहती है. मशरूम का बीज तैयार करने की तकनीक आसान है. महिलाओं को इसके लिए बहुत अधिक निवेश भी करने की जरूरत नहीं होती. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के अच्छे अवसर हैं, क्योंकि वहां मशरूम के बीजों की कमी रहती है.

भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान बंगलुरु उत्पादकों के लिए नियमित रूप से मशरूम की खेती और इसके बीज तैयार करने के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करता है. मशरूम से बनने वाले नाना प्रकार के व्यंजन तैयार करना भी महिलाओं के लिए एक अनुकूल व्यवसाय है. आज के समय में जबकि कामकाजी महिलाओं के लिए घर में तरह-तरह के व्यंजन तैयार करना संभव नहीं है, पोषक तत्वों से भरपूर मशरूम के व्यंजन बनाकर उनकी आपूर्ति करना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है. मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है. मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी आदि व्यंजन पहले से ही का़फी लोकप्रिय हैं. संस्थान ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो गमले रखने वालों और पुष्प प्रेमियों के लिए एक आकर्षण है. मशरूम को प्रोत्साहित करने का एक लाभ यह भी है कि पैदावार के बाद इसकी बची-खुची सामग्री जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जैविक खाद तैयार करने में सहायक सिद्ध होती है.

Naye Rojgaar ka avsar Mushroom utpadan

नए रोजगार का अवसर -मशरूम उत्पादन


कृषि रोड मैप के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। धान का कटोरा के रूप में विख्यात बक्सर में कई किसान परंपरागत खेती से हटकर अपनी पहचान बना रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं विनोद कुमार सिंह, जिन्होंने छोटे से शहर में मशरूम की खेती कर अन्य किसानों को नई राह दिखायी है। लगभग बारह सौ वर्ग फीट में मशरूम की खेती से पन्द्रह हजार रुपये तक प्रतिमाह अर्जित करने वाले इस किसान को कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण(आत्मा) ने गैर-परंपरागत खेती का रोल-माडल चुना है। आत्मा के सहयोग से ही अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए श्री सिंह के मशरूम बाग में हर सप्ताह कृषक पाठशाला आयोजित किये जा रहे हैं।

कैसे मिली प्रेरणा

सिमरी प्रखंड के किसान-श्री रह चुके किसान विनोद कुमार सिंह को मशरूम की खेती की प्रेरणा रांची में इसकी खेती कर रहे किसान भाइयों से मिली। शुरू में उन्होंने एक कमरे में इसका उत्पादन शुरू किया। लागत कम और मुनाफा ज्यादा देख उन्होंने बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती शुरू कर दी।

मार्केट की समस्या अब नहीं

किसान ने बताया कि दस साल पहले जब उन्होंने प्रयोग के तौर पर इसकी खेती प्रारंभ की तो तैयार माल को खपाना बड़ी समस्या थी। यहां कोई खरीददार नहीं मिलते थे। तब उन्होंने इसकी खेती बंद कर परंपरागत धान व गेहूं की खेती में लग गये। चार साल पूर्व दुबारा खेती शुरू की तो बाजार की समस्या नहीं रही। छोटकी सारीमपुर स्थित उनके मशरूम के बाग से प्रतिमाह डेढ़ क्विंटल से ज्यादा माल निकलता है और सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से आसानी से बाजार में बिक जाता है।

कैसे पाते हैं बेहतर उपज

श्री सिंह बताते हैं कि एक किलो मशरूम तैयार करने में बीस रुपये तक का खर्च आता है और एक माह का समय लगता है। उनके मुताबिक आयस्टर मशरूम के लिए सौ लीटर पानी में सौ एमएल फार्मालीन व साढ़े सात ग्राम कार्वेडाजीन का घोल तैयार करना पड़ता है। इस घोल में धान का पुआल या कुट्टी को बीस से पच्चीस घंटे तक डुबो कर रखना पड़ता है। बाद में कुट्टी को पानी से निथार कर पालीथिन बैग में तह लगाया जाता है। हर तह के बीच में मशरूम के बीज का छिड़काव किया जाता है। पन्द्रह दिनों में कवक जाल बनने पर पालीथिन को हटा कर बेड को प्लास्टिक जाली के सहारे टांग दिया जाता है। सप्ताह भर में खाने योग्य मशरूम तैयार हो जाता है।

लागत कम मुनाफा ज्यादा

किसान बताते हैं कि औसत एक किलो मशरूम की आधार खेत तैयार करने के लिए चार रुपये की कुट्टी, आठ रुपये का बीज, चार रुपये की दवा चार रुपये जाली व तीन-चार रुपये ट्रांसपोर्ट व अन्य में खर्च होते हैं। जबकि, तैयार माल के सौ रुपये मिल जाते हैं। श्री सिंह के मुताबिक मशरूम की खेती के लिए कमरे में नमी 80 से 85 तथा तापमान 15 से 23 डिग्री सेल्सियस के बीच होनी चाहिये।

Labhkari hai Mushroom ki kheti


लाभकारी है मशरूम की खेती

मशरूम का उत्पादन कर लघु व सीमांत किसान भी कम लागत और अल्प अवधि में ज्यादा लाभान्वित हो सकते हैं. जिले में एक दशक पूर्व मशरूम की अच्छी उपज होती थी, जो विगत वषरें में नहीं हो रहा था. परंतु महंगी खेती से हलकान किसानों ने फिर उद्यमिता पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.

जिले के कई किसान आज मशरूम उत्पादन की ओर रूख कर चुके हैं और उन्होंने वैज्ञानिकों की सहायता लेकर नयी तकनीक से उत्पादन में जुड़ गये हैं. नयी-नयी फसलों की खेती कर जिले के किसान मॉडल बने तुरकौलिया पश्चिमी पंचायत के नया टोला निवासी सेवानिवृत्त प्रखंड कृषि पदाधिकारी कन्हैया सिंह मशरूम उत्पादन में जुड़े जिले के लघु व सीमांत किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं.

श्री सिंह बताते हैं कि मशरूम के लिए खेती करने की सलाह उन्हें डीडीसी से मिली. जिस पर उन्होंने तकनीक की जानकारी प्राप्त कर मशरूम का प्रत्यक्षण के लिए छोटे से कमरे से उत्पादन करने की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि प्रत्यक्षण के रूप में 100 वर्ग फुट की जगह में किया गया उत्पादन सफल रहा.

उत्पादन की विधि
इस संदर्भ में श्री सिंह बताते हैं कि मशरूम उत्पादन के लिए सितंबर से मार्च तक का माह उपयुक्त होता है, क्योंकि इसके उत्पादन के लिए ठंड का मौसम अनुकूल होता है. उत्पादन के लिए धान के पुआल, कुट्टी या गेहूं के भूसे को 24 घंटे गर्म पानी में डूबा कर उपचारित करने के बाद उसे हल्का सूखा दिया जाता है.

फिर 18 गुणा 24 इंच के पॉलीथिन बैग में भूसे को एक इंच बिछा कर प्रत्येक पॉलीथिन में 100 ग्राम मशरूम बीज बिछा दें. इसके बाद एक इंच मोटा भूसा बिछा कर बीज को ढंक दें और पॉलीथिन का मुंह बंद करते वक्त उसमें 15 से 20 कांटेदार औजार से पॉलीथिन में छिद्र कर दें और उसे कमरे में शेड से लटका दें.

इस विधि को 25-30 दिनों में मशरूम तैयार हो जायेगा. इस विधि में प्रति बैग में रखे 100 ग्राम का बीज से डेढ़ से दो किलो कच्चा मशरूम का उत्पादन हुआ है. वे बताते हैं कि सावधानी से तैयार मशरूम को निकाल, फिर उसे शेड से लटका दें.

इस तरह प्रत्येक 25 दिनों के अंतराल पर तीन बार उत्पादन होगा. उन्होंने बताया कि 100 वर्ग फुट में मशरूम उत्पादन पर करीब पांच हजार की लागत आती है, जबकि तीन बार में प्राप्त उत्पादन से किसान को बाजार मूल्य से 12 हजार रुपये की राशि प्राप्त होती है.

क्या है उपयोग
गौरतलब हो कि मशरूम का उपयोग सब्जी, पकौड़ा, अचार, सूप व मशरूम मिट के रूप में खाने के उपयोग में आता है. साथ ही, मशरूम से मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गठिया, कैंसर आदि की दवा बनाने में भी इसका प्रयोग होता है. मशरूम का प्रयोग खाद्य पदार्थ व दवाओं में प्रयोग होने से बाजार में इसकी अधिक मांग है.

यहां बता दें कि मशरूम का जिक्र पुराने ग्रंथों में भी अच्छे हर्ब के रूप में वर्णन की गयी है. वहीं, सनातन धर्म में ग्रंथ भृगु सहित इसे रोजाना सेवन करने की सलाह दी गयी है. वहीं, हजारों वर्ष पुराने चीन के मेडिसिन डायरेक्टरी में साल में 355 दिन सेवन करने की सलाह देते हुए वेदों में शक्तिशाली औषधि में से मशरूम को ए-वन से श्रेष्ठतम बताया है.

कम लागत लगाएं, अच्छा मुनाफा पाएं

बेवर: अधिकांश आबादी शाकाहारी है जिसमें कुपोषण एक मुख्य समस्या है। कुपोषण से बचने के लिए मशरूम से बेहतर और सस्ता कुछ भी नहीं हो सकता, शायद यही कारण है कि दिनों दिन मशरूम की मांग बढ़ रही है। मौजूदा समय मशरूम पैदा करने के लिए सर्वोत्तम समय है। किसान मशरूम उत्पादन कर कम लागत में भारी मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम की मांग शाकाहारी व मांसाहारी दोनों ही वर्गो में बढ़ती जा रही है। सब्जी की दुकान से लेकर पंच सितारा होटलों तक में इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है।

खंड विकास अधिकारी रामसागर यादव बताते हैं कि यहां का किसान आलू के पीछे पड़ा है, जबकि आलू में प्रति वर्ष बढ़ती लागत और बम्पर पैदावार के चलते खपत का न हो पाना एक मुख्य समस्या है,यही कारण है कि किसान लगातार घाटे में जा रहा है। श्री यादव का कहना है कि मौजूदा समय मशरूम उत्पादन के लिए श्रेष्ठ समय है और इसे हर जगह बड़े आराम से उगाया जा सकता है। शुरूआती समय में इसके लिए 22से 26 डिग्री सेन्टीग्रेड की और बाद में 14 से 18 डिग्री सेन्टीग्रेड की आवश्यकता होती है। इसे उगाने का तरीका भी बहुत ही आसान है। इसके लिए पुआल तथा स्थानीय अपशिष्टों की कम्पोस्ट बना कर यदि थैलियों में उगाना है तो प्लास्टिक की थैलियों में भर कर 2 मिमी. व्यास के छोटे छोटे छेद कर देते है विशेष प्रकार के मशरूम बीज को विश्वसनीय दुकान से खरीदकर बिजाई कर देनी चाहिए। इन थैलियों को एक कक्ष में रखकर उस पर पुराने अखबार से ढक देना चाहिए। नमी बनाए रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। दो महीने में मशरूम तैयार हो जायेगी। समान्यत: 8 से 9 किलो मशरूम प्रति वर्ग मीटर में पैदा होती है। मशरूम में बटन प्रजाति सरल ढंग से पैदा की जा सकती है। मौजूदा समय में मशरूम 110 से लेकर 150 रूपया प्रति किलो तक बिक रही है। इसके व्यंजन शादी समारोह में भी शान बढ़ा रहे हैं, जो किसान के लिए काफी लाभदायक हो सकता है।