Saturday, 12 May 2012

मशरूम की खेती कर संपन्नता की इबादत लिख रहा किसान - Digging gold by mushroom farming in india

 सीतामढ़ी। कहते है कि मेहनत का फल मीठा होता है। कुछ ऐसे ही मजबूत इरादों से किए गए मेहनत का फल शहर के राम नारायण को मिला है। 37 वर्षीय राम नारायण मशरूम की खेती के जरिए आर्थिक आजादी की इबादत लिख डाली है। कम लागत, कम समय व हल्की देख भाल के बाद राम नारायण ने अपने कमरे में मशरूम उगाया है, जो उनके लिए सोना साबित हो रही है। कम समय में ही मशरूम ने उनकी जिंदगी बदल दी है। मूल रूप से परिहार प्रखंड के मुसहरनिया गांव निवासी राम नारायण वैसे तो परंपरागत खेती भी करते रहे है, लेकिन अब वह केवल मशरूम की खेती करना चाहते है। वजह इसमें कमाई ज्यादा है। पूसा कृषि विवि से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने इसका उत्पादन शुरू किया। बताते है कि दो हजार की लागत से इसकी खेती की जाती है और 22 दिन बाद फसल तैयार हो जाता है। जिसका बाजार मूल्य न्यूनतम 5 हजार 5 सौ मिल जाता है। मशरूम की खेती बारहों मास की जा सकती है। बताते है कि मशरूम की खेती बेरोजगारी भगाने का अचूक हथियार साबित हो सकती है। बशर्ते की इसकी खेती पूरे मन से की जाए। राम नारायण कहते है ऐसा कौन सा धंधा है जिसमें बीस बाइस दिन में लागत का दो गुणा कमाई होता हो। मशरूम की खेती गांव व शहर में कही भी कमरे में की जा सकती है। बस कमरों में अंधेरा के साथ तापमान नम होना चाहिए। बताते है कि वे दो कमरों में मशरूम उपजा रहे है। शुरू में एक ही कमरे के छोटे से भाग में इसकी खेती की। मांग बढ़ती गई तो कमाई बढ़ी। कमाई बढ़ी तो खेती का दायरा भी बढ़ता गया। राम नारायण ने इस साल 60 हजार किलो मशरूम के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। बताते है कि मशरूम पोष्टिक तत्वों से भरपुर एक प्रकार की सब्जी है। इसमें प्रोटीन, थायमीन, राइजोलेवन, विटामीन सी, नाइसिल, आयरन, कैल्सियम, मैगनीशीयम, फासफोरस, पोटाश व जिंक प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। यह सुपाच्य व सेहत के लिए लाभकारी होता है। यही वजह है कि चिकित्सक भी इसका प्रयोग करने की बात कहते है। पूरे विश्व में मशरूम लोगों की बड़ी मांग बन गया है। अब जिले में भी इसकी मांग बढ़ रहा है। वर्तमान में एक किलो मशरूम की कीमत सौ रुपये मिल रही है। अब तक इसे स्थानीय बाजारों में बेचते थे, अब बाहर से भी इसकी मांग होने लगी है। राम नारायण स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त कर चूके है। उनके खेती की तकनीक अब उनके परिवार के सदस्य तो अपना ही रहे है, आस पास के किसान भी उनसे इस खेती की तकनीक जानने पहुंच रहे है।

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