रिपुरा के धलाई जिले के बलराम और माराचेरा गांवों की पहचान निम्न फसल सघनता के साथ कम सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्र के रूप में की गई । यहां के स्थानीय किसान एकमात्र फसल धान को साल में दो बार उगाने के लिए बाध्य थे। वे कभी-कभी बीच में सब्जियों का भी उत्पादन करते थे लेकिन यह उनके अतिरिक्त आय के साधन के लिए पर्याप्त नहीं था। यह सब देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एनएआईपी परियोजना आजीविका सुरक्षा के अंतर्गत अतिरिक्त आजीविका सृजन के लिए क्षेत्रीय केंद्र के सहयोग से नेह क्षेत्र के किसानों के बीच मशरूम की खेती आरम्भ की।
इस पहल में मई 2008 में सर्वप्रथम धलाई जिलें के छह स्वयं सहायता समूहों के बीच मशरूम की खेती का प्रदर्शन किया गया जिससे 55 लोग लाभान्वित हुए। ये छह स्वयं सहायता समूह अबचंगा, खाबक्सा, शारदा, पोहोर, बोडोल और लोकनाथ थे। दिसम्बर 2010 तक 216 किसानों ने मशरूम की खेती शुरू कर दी। किसानों ने 12 रुपए प्रति पॉलीबैग की दर से 46492 रुपए लागत से 2062 कि.ग्रा मशरूम का उत्पादन किया, जिसे उन्होंने स्थानीय बाजार में 80 रुपए\कि.ग्रा. मशरूम बेचकर 165045 रुपए की आय अर्जित की। इससे उनको 118509 रुपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ। इसके अलावा 1185 श्रम दिवस का रोजगार भी पंजीकृत हुआ। अप्रैल 2009 से मार्च 2010 के दौरान किसानों ने बलराम और माराचेरा गांव में 882 व 889 मशरूम बीज का उपयोग कर क्रमशः 560.30 व 559 कि.ग्रा. मशरूम का उत्पादन किया।
रेस्तराओं में बटन मशरूम, चाइनीज भेल, मलाई मशरूम करी, मशरूम बिरयानी और मशरूम ग्रेवी मशरूम के प्रमुख व्यंजन है। बलराम गांव के बिमल देबनाथ का कहना है कि मैं इस बात से बहुत खुश हूं कि राज्य के प्रमुख होटलों में मेरे मशरूम परोसे जाते है। बलराम गांव की एक महिला किसान रेबिका संगमा का कहना है कि स्थानीय बाजार में 80 रुपए\कि.ग्रा. मशरूम बेचना किसी सपने से कम नहीं है। यह सबकुछ आईसीएआर द्वारा निश्चित तकनीक और समय-समय दी गई सहायता से ही सम्भव हो सका है। डॉ. जी. सी. मुंडा, प्रधान अन्वेषक, बारापानी ने कहा कि चूंकि मशरूम की मांग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर बढ़ रही है अतः पर्याप्त तकनीकी आदानों के साथ उत्पादन प्रौद्योगिकियों लागू किया जाना चाहिए। श्री मुंडा ने कहा कि मशरूम की खेती से होने वाले लाभोकं को देखते हुए यहां के बहुत से किसान मशरूम की खेती में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और इसे व्यापार के रूप में अपना रहे हैं।
इस पहल में मई 2008 में सर्वप्रथम धलाई जिलें के छह स्वयं सहायता समूहों के बीच मशरूम की खेती का प्रदर्शन किया गया जिससे 55 लोग लाभान्वित हुए। ये छह स्वयं सहायता समूह अबचंगा, खाबक्सा, शारदा, पोहोर, बोडोल और लोकनाथ थे। दिसम्बर 2010 तक 216 किसानों ने मशरूम की खेती शुरू कर दी। किसानों ने 12 रुपए प्रति पॉलीबैग की दर से 46492 रुपए लागत से 2062 कि.ग्रा मशरूम का उत्पादन किया, जिसे उन्होंने स्थानीय बाजार में 80 रुपए\कि.ग्रा. मशरूम बेचकर 165045 रुपए की आय अर्जित की। इससे उनको 118509 रुपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ। इसके अलावा 1185 श्रम दिवस का रोजगार भी पंजीकृत हुआ। अप्रैल 2009 से मार्च 2010 के दौरान किसानों ने बलराम और माराचेरा गांव में 882 व 889 मशरूम बीज का उपयोग कर क्रमशः 560.30 व 559 कि.ग्रा. मशरूम का उत्पादन किया।
रेस्तराओं में बटन मशरूम, चाइनीज भेल, मलाई मशरूम करी, मशरूम बिरयानी और मशरूम ग्रेवी मशरूम के प्रमुख व्यंजन है। बलराम गांव के बिमल देबनाथ का कहना है कि मैं इस बात से बहुत खुश हूं कि राज्य के प्रमुख होटलों में मेरे मशरूम परोसे जाते है। बलराम गांव की एक महिला किसान रेबिका संगमा का कहना है कि स्थानीय बाजार में 80 रुपए\कि.ग्रा. मशरूम बेचना किसी सपने से कम नहीं है। यह सबकुछ आईसीएआर द्वारा निश्चित तकनीक और समय-समय दी गई सहायता से ही सम्भव हो सका है। डॉ. जी. सी. मुंडा, प्रधान अन्वेषक, बारापानी ने कहा कि चूंकि मशरूम की मांग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर बढ़ रही है अतः पर्याप्त तकनीकी आदानों के साथ उत्पादन प्रौद्योगिकियों लागू किया जाना चाहिए। श्री मुंडा ने कहा कि मशरूम की खेती से होने वाले लाभोकं को देखते हुए यहां के बहुत से किसान मशरूम की खेती में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और इसे व्यापार के रूप में अपना रहे हैं।
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