Saturday 12 May 2012

Button Mushroom Cultivation in india

देश में मशरूम पहले से ही उगाया जा रहा है। लेकिन घरेलू बाजार और विदेश में इसकी मांग लगातार बढ़ने से इसकी खेती का दायरा और बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। उत्पादकों के लिए मशरूम के लिए बाजार की कोई समस्या नहीं होगी। सफेद बटन मशरूम की मांग कुछ ज्यादा ही रहती है क्योंकि इसमें कुछ गुणकारी तत्व बीमारियों को नियंत्रित रखने में मदद पहुंचाते हैं। यही वजह है कि सफेद बटन मशरूम उगाना किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है। मौसम के लिहाज से चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा में किसान सर्दियों के मौसम में मशरूम उगा सकते हैं। पंजाब में सबसे अधिक करीब 48,000 टन मशरूम का उत्पादन पहले से ही हो रहा है। इसमें 90 फीसदी सफेद बटन मशरूम की हिस्सेदारी है। भारत के अलावा नीदरलैंड, फ्रांस, अमेरिका, इटली, पोलैंड, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान और चीन में इसका उत्पादन होता है।

सफेद बटन मशरूम की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग लगातार बढ़ रही है। दरअसल तमाम शोधों में इसमें कई गुणकारी तत्व पाए गए हैं। सफेद बटन मशरूम कैंसर जैसी घातक बीमारी में काफी फायदेमंद होता है। इस लिहाज से घरेलू खपत के अलावा इसके निर्यात की काफी संभावनाएं है। वैसे यह विश्व में सबसे अधिक उगाए जाने वाला मशरूम है। भारत में भी व्यावसायिक तौर पर इसकी खेती का चलन बढ़ रहा है।

मुख्य रूप से यह मशरूम ठंडे क्षेत्रों में उगाया जाता है, लेकिन अब नई तकनीक से दूसरे इलाकों में यह उगाया जाने लगा है। इसके लिए मशरूम के लिए उपयुक्त वातावरण कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। भारत में इसे जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तरी पहाडी क्षेत्र, पंजाब और हरियाणा में उगाया जा रहा है। देश में इसका उत्पादन एक लाख टन तक पहुंच गया है। इसमें अधिकतर उत्पादन निर्यात इकाईयों द्वारा किया जा रहा है। देश में करीब 12 बडी निर्यात इकाइयां हैं। जिनका वार्षिक उत्पादन 50,000 टन है।

मशरूम स्पॉन का उत्पादन
बटन मशरूम स्पॉन तैयार करने के लिए गेहूं या ज्वार, दोनों का ही प्रयोग किया जाता है। गेहूं के दानों को गीला करने के बाद उबालकर उसमें दो फीसदी कैल्शियम और कैल्शियम सल्फेट का मिश्रण कर निर्जीवीकरण करते हैं। इसके बाद सफेद बटन मशरूम का शुद्ध कल्चर जीवाणुविहीन कक्ष में डालते हैं। इसके बाद 12-15 दिनों में इसका कवक जाल सभी दानों के ऊपर फैल जाता है। इसे स्पॉन कहते है।

बटन मशरूम उगाने की विधि
ठंडे वातावरण वाले कमरे, बरामदे या पॉलीथिन से बनाए गए हाउस में कंपोस्ट और स्पॉन का मिश्रण किया जाता है। 100 किलो कंपोस्ट में 700 ग्राम स्पॉन या मशरूम का बीज मिलाया जाता है और इसे एक मीटर लंबी-चोड़ी क्यारी में बिछाया जाता है। इसके बाद करीब एक माह बाद मशरूम उगने लगते हैं। इन क्यारियों से समय-समय पर विकसित मशरूम को तोड़ लिया जाता है। खास बात यह है कि पंजाब, हरियाणा जैसे इलाकों में मशरूम उगाने के लिए सर्दियों के मौसम में भी तापमान नियंत्रित करने की जरूरत होती है। मशरूम उगाने के लिए 14 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान रहना जरूरी है। जमीन पर 100 किलो कंपोस्ट बिछाकर तैयार
क्यारी में 18 से 25 किलो तक मशरूम उगाया जा सकता है।

तुडाई के बाद प्रबंधन
सही अवस्था में तुडाई करना बेहद जरूरी है। ऐसा न करने पर सफेद बटन मशरूम की महक, चमक, स्वाद और गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ता है। इसकी तुडाई उस समय करनी चाहिए, जब मशरूम का आकार 30-40 मिलीमीटर व्यास हो। सामान्यतया तुडाई के समय मशरूम का आकार तने की लंबाई से दोगुना होना चाहिए। तुडाई के बाद मशरूम को छिद्र युक्त पॉलीथीन बैगों में एकत्र करके 250 या 500 ग्राम के पैकेट बनाए जा सकते हैं।
वैस तो मशरूम को कम तापमान पर उगाया जाता है, लेकिन इसके बावजूद इसे तोड़ने के तुरंत बाद 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना आवश्यक है। जिससे श्वसन की दर कम हो सके और कमरे के तापमान पर शीघ्र ही खराब होने की आशंका कम हो जाए। इसे तोडने के बाद इसकी छंटाई करना बहुत जरूरी है। जिससे ऐसे मशरूम जो आकार में छोटे या बहुत बड़े हों, भूरा रंग व किसी प्रकार का अन्य छब्बा अगर हो तो निकाल देना चाहिए। साथ ही मशरूम की सफेदी को बरकरार रखने के लिए रसायनों के घोल में डुबोकर उपचारित किया जाता है। इसके लिए हाइड्रोजन पर ऑक्साइड का कम सांद्रता वाला घोल लेते हैं, जिसमें मशरूम को आधे घंटे तक डुबोते हैं। इसके बाद सिट्रिक एसिड 0.25 फीसदी का घोल जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड 500 पीपीएम होता है, में मशरूम रखते है। वैसे सामान्य रूप से सफेदी बनाए रखने के लिए मशरूम को पोटेशियम मेटा बाइसल्फाइट से साफ करते हैं। -रामवीर सिंह



मशरूम की पैकेजिंग
साफ व उपचारित मशरूम को विभिन्न प्रकार के डिब्बे और बॉक्स में रखते हैं। जिसमें मशरूम अधिक समय तक सुरक्षित रहे। मशरूम को पैक करने के लिए उपयुक्त पैकिंग मैटीरियल का चयन आवश्यक है। सामान्यतया पॉलीथीन की थैली का उपयोग करते हैं। जिसमें 200-250 ग्राम मशरूम आसानी से आ सके। पॉलीथीन की थैलियों में 0.5 फीसदी जगह वायु के आने जाने के लिए छोडी जाती है ताकि मशरूम को रेफ्रिजरेटरों में भंडारित किया जा सके।

मशरूम शीघ्र नष्ट होने वाला आहार है, इसलिए इसके परिवहन के लिए रेफ्रिजिरेटेड वैन का इस्तेमाल होना चाहिए। जिससे इसे आसानी से लंबी दूरियों तक ले जाया जा सके। इस वैन में मशरूम को लादने के पूर्व उसे कम तापमान पर रखना जरूरी है। स्थानीय बाजार में बेचने के लिए मशरूम को उपयुक्त पैकिंग में बदलकर बर्फ के इंसुलेटेड डिब्बों में रखकर ले जाना चाहिए। मशरूम का भंडारण कमरे के तापमान पर 24 घंटे व रेफ्रिजरेटरों में एक से दो सप्ताह तक किया जा सकता है। भंडारण के लिए उचित तापमान 5 डिग्री सेंटीग्रेड और 85-90 फीसदी आपेक्षिक आद्र्रता होनी चाहिए। इससे विटामिन-सी एवं अन्य तत्व बरकरार रहते हैं।

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