साहिबगंज, जासं. : मशरूम की खेती से कम लागत में अधिक मुनाफा मिल सकता है। यह कई मर्ज की दवा भी है। इस कारण जिले में मशरूम की खेती का प्रयास प्रारंभ किया गया है। इसके लिए महिलाओं को जागरूक करने के उद्देश्य से कृषि विज्ञान केंद्र में मशरूम प्रशिक्षण देने सहित अनेक कार्य चलाए जा रहे हैं। जिले की करीब पचास महिलाएं मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण भी ले चुकी हैं।
मशरूम की खेती काफी कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाला होता है। इसके लिए काफी अधिक जगह की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। मशरूम की खेती के लिए घर के किसी भी कमरे का उपयोग किया जा सकता है। इसमें पुआल की कुट्टी का डेढ़ इंच का स्तर बनाकर उसमें मशरूम के बीज डाले जाते है। इससे पहले इसमें कुछ रसायन का प्रयोग करते है। 20 दिन के बाद कुट्टी पर सफेद रंग के जाल दिखने लगते है, जो 30 दिनों के बाद तैयार होने लगता है। लोग मशरूम की खेती घर का सारा काम करने के बाद बचे समय में कर सकते है। इसके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है और महिलाओं के लिए अर्थोपार्जन का एक अच्छा जरिया बन सकता है। देहातों में न केवल लोग इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं बल्कि बाजारों में बेचकर आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं।
मशरूम से होने वाले फायदे
मशरूम न केवल एड्स जैसे रोग से बचाने की क्षमता रखता है वरन उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा, गठिया, एलर्जी एवं कैंसर से बचाने में भी लाभदायक है। यह कई विटामिनों से लवरेज है। मशरूम में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। जो छोटे बच्चे और बूढ़ों के लिए काफी फायदेमंद होता है। मशरूम में उतना ही प्रोटीन होता है, जितना किसी भी प्रकार के मांस में। इसलिए वैसे लोग जो शाकाहारी होते है, प्रोटीन के लिए इसका प्रयोग कर सकते है।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञान केंद्र के समन्वयक
साहिबगंज कृषि विज्ञान केंद्र के समन्वयक अमृत कुमार झा ने बताया कि मशरूम की खेती के लिए किसानों को अभी रांची से स्पोन यानी बीज मंगाकर दिया जा रहा है और अभी कृषि विज्ञान केंद्र में इसकी प्रदर्शनी लगाई गई है। इसकी खेती भी जिले के किसान कर रहे हैं। आने वाले वक्त में ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी खेती कर सकें, यह कृषि विज्ञान केंद्र का प्रयास है।
मशरूम की खेती काफी कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाला होता है। इसके लिए काफी अधिक जगह की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। मशरूम की खेती के लिए घर के किसी भी कमरे का उपयोग किया जा सकता है। इसमें पुआल की कुट्टी का डेढ़ इंच का स्तर बनाकर उसमें मशरूम के बीज डाले जाते है। इससे पहले इसमें कुछ रसायन का प्रयोग करते है। 20 दिन के बाद कुट्टी पर सफेद रंग के जाल दिखने लगते है, जो 30 दिनों के बाद तैयार होने लगता है। लोग मशरूम की खेती घर का सारा काम करने के बाद बचे समय में कर सकते है। इसके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है और महिलाओं के लिए अर्थोपार्जन का एक अच्छा जरिया बन सकता है। देहातों में न केवल लोग इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं बल्कि बाजारों में बेचकर आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं।
मशरूम से होने वाले फायदे
मशरूम न केवल एड्स जैसे रोग से बचाने की क्षमता रखता है वरन उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा, गठिया, एलर्जी एवं कैंसर से बचाने में भी लाभदायक है। यह कई विटामिनों से लवरेज है। मशरूम में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। जो छोटे बच्चे और बूढ़ों के लिए काफी फायदेमंद होता है। मशरूम में उतना ही प्रोटीन होता है, जितना किसी भी प्रकार के मांस में। इसलिए वैसे लोग जो शाकाहारी होते है, प्रोटीन के लिए इसका प्रयोग कर सकते है।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञान केंद्र के समन्वयक
साहिबगंज कृषि विज्ञान केंद्र के समन्वयक अमृत कुमार झा ने बताया कि मशरूम की खेती के लिए किसानों को अभी रांची से स्पोन यानी बीज मंगाकर दिया जा रहा है और अभी कृषि विज्ञान केंद्र में इसकी प्रदर्शनी लगाई गई है। इसकी खेती भी जिले के किसान कर रहे हैं। आने वाले वक्त में ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी खेती कर सकें, यह कृषि विज्ञान केंद्र का प्रयास है।
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