मशरूम अनुसंधान निदेशालय, शिमला
बरसात के बाद अचनाक प्रकट होने वाले मशरूम अनंतकाल से मानवजाति को प्रभावित करते रहे हैं। मशरूम को कुछ लोग शैतान की टोपी कहते हैं जबकि कुछ लोग इसे शाही खाद्य पदार्थ, योद्धाओं की शक्ति आदि कहता है। चीन और ग्रीस समेत कई अन्य सभ्यताओं ने इसके औषधीय गुणों को भी मान्यता दी है।
मध्ययुग के दौरान कई देशों में मशरूम की खेती की छिटपुट कोशिशें हुई हैं। हालांकि इसकी खेती के वैज्ञानिक आधार की स्थापना 20वीं सदी के शुरू में शुद्ध कल्चर तकनीक के विकास के साथ ही हुई थी।
सदी के शुरू में मुख्य रूप से बटन मशरूम की खेती होती थी पर आज दुनिया के भिन्न हिस्सों में इसकी करीब 60 किस्में उपजाई जाती हैं।
नेशनल सेंटर फॉर मशरूम रिसर्च एंड ट्रेनिंग की स्थापना आईसीएआर के बैनर तले 1983 में सोलन (हिमाचल प्रदेश) में की गई थी। 1997 में इसका नाम बदलकर एनआरसी मशरूम कर दिया गया था। बाद में इसे मशरूम अनुसंधान निदेशालय के रूप में दिसंबर 2008 में अपग्रेड किया गया। यह कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 22 पर समुद्रतल से 1500 मीटर की उंचाई पर शिमला से 45 किलोमीटर पहले है। उस समय के केंद्रीय कृषि मंत्री डॉ. जीएस ढिल्लन ने 21 जून 1987 को इस निदेशालय का औपचारिक उद्घाटन किया था।
यह निदेशालय मशरूम से संबंधित तमाम पहलुओँ पर अनुसंधान करने के लिए है। बुनियादी अध्ययन के अलावा, भिन्न किस्म के मशरूम के लिए खेती की तकनीक का विकास करने और देश भर में अनुसंधान का संयोजन करने पर फोकस है। इसके लिए इसके अखिल भारतीय संयोजित अनुसंधान कार्यक्रम केंद्र हैं। मशरूम जैसी गैरपंरपरागत फसल के लिए तकनालाजी के प्रभावी हस्तांतरण के लिए निदेशालय के तहत ये केंद्र आवश्यक प्रशिक्षण और इसके विस्तार के लिए काम करते हैं।
देश के मशरूम जर्मप्लाज्म का कैटलॉग बनाना, मशरूम की किस्मों में जेनेटिक सुधार और बेहतर पैदावार / उपज और गुणवत्ता के लिए तकनालॉजी को परफेक्ट बनाना मुख्य चिन्ताओँ में हैं। देश में मशरूम की संपदा के संग्रह, पहचान, कैटलॉगिंग और संरक्षण के लिए अक्सर देश भर में सर्वेक्षण किया जाता है। निदेशालय का राष्ट्रीय जीन बैंक इस सिलसिले में देश में मशरूम के जेनेटिक संसाधन का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। जर्म प्लाज्म को मोलिकुलर स्तर पर ही बांटा जा चुका है और इस तरह जो सूचना तैयार हुई है, का उपयोग कल्चर की सही पहचान और दोहराव को खत्म करने तथा विविधता से संबंधित विश्लेषण के लिए किया गया है। निदेशालय के जेनेटिक सुधार कार्यक्रम में मशरूम के बुनियादी जीव विज्ञानष भिन्न मशरूम की यौनिकता शैली, सिंगल स्पोर को अलग करना और मेटिंग का उनका व्यवहार तथा बेहतर ऊपज और मशरूम की गुणवत्ता के लिए अनुकूल संकरण शामिल है।
इसके अलावा, निदेशालय देश में मशरूम की खेती के विविधीकरण पर भी फोकस कर रहा है और यह कृषि तथा मौसम की स्थितियों के अनुसार होता है ताकि ऊर्जा की आवश्यकता कम हो और मशरूम की खेती का मौजूदा खेती प्रणाली में एकीकरण हो।
मशरूम की उच्च गुणवत्ता वाली बीज, जिसे स्पॉन कहा जाता है, तैयार करने के लिए कई अनुसंधान किए जा रहे हैं। उपयुक्त अधःआधार वाली सामग्री की पहचान, उसके पूर्व उपचार, संशोधन, संचारण भंडारण और परिवहन प्राचलों समेत स्पॉन तैयार करने के तरीके का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जा रहा है।
उच्च गुणवत्ता वाले और सस्ते कच्चे माल की पहचान, उनका पूर्व उपचार तथा थोक में इनकी हैंडलिंग के तकनीक कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनपर निदेशालय में सक्रिय अनुसंधान चलता है। निदेशालय ने बटन मशरूम के लिए पर्यावरण अनुकूल द्रुत कंपोस्टिंग का विकास किया है। खेती के प्राचल, केसिंग सॉयल इंग्रीडियंट्स (मिट्टी के अवयव) और खेती से संबंधित अन्य पहलुओं की विस्तार पूर्वक जांच की गई है।
कई अन्य मशरूम से संबंधित खेती की तकनालाजी का लगातार अनुसंधान किया जा रहा है ताकि देश के भिन्न राज्यों में मशरूम के विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। ओएस्टर मशरूम की खेती के लिए मुश्किल हॉट वाटर ट्रीटमेंट की जगह पुआल के रासायनिक स्टरलाइजेशन की तकनीक का विकास इस केंद्र में ही किया गया। ओएस्टर मशरूम के लिए पुआल के बल्क पैश्चराइजेशन की नई तकनीक का मानकीकरण कर दिया गया है। इसी तरह, मिल्की मशरूम की खेती के लिए ऐसी ही तकनीक का विकास किया गया है। इसके साथ अतिरिक्त यह है कि बैग केस में होते हैं।
मानकीकृत की गई कुछ अन्य तकनालाजियों में गेहूं के पुलाल पर ऑरीकुलेरिया, शीटेक और सिन्थेटिक लॉग्स पर गैनोडेमा, पैडी स्ट्रॉ के साथ कॉटन वेस्ट पर पैडी स्ट्रॉ मशरूम आदि की खेती शामिल है। गुजरे 2-3 दशक में निदेशालय ने कई अन्य मशरूम जैसे विन्टर मशरूम, पैडी स्ट्रॉ मशरूम हेरीसियम, मैक्रोसाइब, जीजेन्टम आदि के लिए भिन्न तकनालाजी का विकास किया है।
निदेशालय के विशेषज्ञ फसल चक्र पर निरंतर नजर रखते हैं। बीमारियों और कीटों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए नई तकनीक से संबधित अनुसंधान निरंतर किए जाते हैं और अगर कुछ नया मिलता है तो उसे किसानों के स्तर पर पहुंचाया जाता है।
निदेशालय फसल तैयार होने के बाद उनके प्रबंध जैसे कूलिंग, पैकिंग और प्रोसेसिंग पर अतिरिक्त ध्यान देता है क्योंकि मशरूम आमतौर पर बहुत कम समय तक ठीक रहते हैं। फसल तैयार होने के बाद हो सकने वाली हानि कम करने के लिए निदेशालय ने मशरूम के कई मूल्यवर्धित उत्पादों का भी विकास किया है।
निदेशालय के पास सभी आवश्यक उपकरणों से लैस अपने किस्म की अनूठी अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं। इनमें दो केंद्रीय प्रयोगशाला, क्रॉप प्रोडक्शन, क्रॉप प्रोटेशन लैब और मोलिकुलर जेनेटिक्स लेबोरेट्री भी है।
निदेशालय के पास प्रयोग आधार पर मशरूम के उत्पादन के लिए एक सुविकसित ढांचागत सुविधा है। कंपोस्टिंग यूनिट में आउटडोर कंपोस्टिंग यार्ड, फेज वन बंकर और बल्क पैश्चराइजेशन टनल शामिल हैं। क्रॉपिंग रूम (खेती के लिए उपयोग में लाए जाने वाले कमरे) में क्लाइमेट कंट्रोल के साथ एयर हैंडलिंग यूनिट से लैस है। इसके अलावा, निदेशालय में मॉडल क्रॉपिंग रूम भी है जो प्रदर्शन और प्रशिक्षण के उद्देश्य से मशरूम की मौसमी और पूरे साल होने वाली खेती में काम आता है। मशरूम उत्पादकों की आवश्यकताओँ की पूर्ति के लिए निदेशालय एक आधुनिक स्पॉन यूनिट भी चलाता है जो उत्पादकों को वाजिब कीमत में उच्च गुणवत्ता वाले स्पॉन मुहैया कराता है।
डीएमआर लाइब्रेरी में बड़ी संख्या में उपस्कर हैं और यह एचओआरटी-सीडी के जरिए सीडी रॉम डाटा सर्च और वैज्ञानिकों के लिए उनके डेस्कटॉप पर सीईआरए के जरिए भिन्न पत्रिकाओँ के लिए निशुल्क ऑनलाइन ऐक्सेस मुहैया कराता है। उत्पादकों और अनुसंधान करने वालों के बीच जानकारी बढ़ाने के लिए निदेशालय मशरूम पर भिन्न तकनीकी और एक्सटेंशन बुलेटिन प्रकाशित करता है।
निदेशालय का संग्रहालय मशरूम पर सूचनाएं रखता है। इसके लिए यहां नमूने, तस्वीरें, चार्ट ऑर मॉडल संरक्षित किए किए गए हैं। इंटरनेट के जरिए निदेशालय कृषि अनुसंधान सूचना सेवा से संबद्ध है और लोकल एरिया नेटवर्किंग के जरिए उपयोगकर्ताओँ को सूचना मुहैया कराता है।
निदेशालय में कैंटीन की अच्छी सुविधा है। इसके अलावा यहां आवश्यक सुविधाओँ से लैस ऑडिटोरियम, 50 बिस्तर वाला ट्रेनीज हॉस्टल और रीसोर्स पर्सन के लिए एक गेस्ट हाउस भी है।
प्रशिक्षण निदेशालय का एक प्रमुख घटक है और यहां किसानों, उद्यमियों और विषय के विशेषज्ञों के लिए हर साल कई ऑन एंड ऑफ कैम्पस प्रशिक्षण का आयोजन किया जाता है। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय - दोनों तरह के उम्मीदवारों के लिए है।
गांवों की आम जनता के बीच मशरूम को लोकप्रिय बनाने के लिए निदेशालय हर साल 10 सितंबर को मशरूम मेला का आयोजन करता है। इसमें नई विकसित तकनालॉजी का भी प्रदर्शन किया जाता है।
निदेशालय प्योर कल्चर, स्पॉन, मशरूम से संबंधित साहित्य, कंपोस्ट के लिए गुणवत्ता परीक्षण सुविधा, कंसलटेंसी, सुविज्ञ सलाह आदि भी मुहैया कराता है।
निदेशालय में 16 वैज्ञानिक, 14 प्रशासनिक, 14 तकनीकी और 10 सपोर्टिंग स्टाफ के मंजूर पद हैं।
चुनौतियों से निपटने के लिए निदेशालय के वैज्ञानिक और अधिकारी मिलकर काम करते हैं। निदेशालाय के कर्मचारी कल्याण कार्यक्रमों में आवास सुविधा के साथ-साथ कर्मचारियों के बच्चों के लिए परिवहन सुविधा शामिल है। कर्मचारियों में खेल भावना का विकास करने के लिए खेल गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
निदेशालय ने पिछले तीन दशक के दौरान मशरूम से संबंधित अनुसंधान और विकास के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और मशरूम को लोकप्रिय बनाने तथा इसकी खेती के बारे में जानकारी फैलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। नतीजतन भारत में मशरूम का उत्पादन 1980 में 3000 टन से बढ़कर अब एक लाख टन से भी ज्यादा हो गया है।
मध्ययुग के दौरान कई देशों में मशरूम की खेती की छिटपुट कोशिशें हुई हैं। हालांकि इसकी खेती के वैज्ञानिक आधार की स्थापना 20वीं सदी के शुरू में शुद्ध कल्चर तकनीक के विकास के साथ ही हुई थी।
सदी के शुरू में मुख्य रूप से बटन मशरूम की खेती होती थी पर आज दुनिया के भिन्न हिस्सों में इसकी करीब 60 किस्में उपजाई जाती हैं।
नेशनल सेंटर फॉर मशरूम रिसर्च एंड ट्रेनिंग की स्थापना आईसीएआर के बैनर तले 1983 में सोलन (हिमाचल प्रदेश) में की गई थी। 1997 में इसका नाम बदलकर एनआरसी मशरूम कर दिया गया था। बाद में इसे मशरूम अनुसंधान निदेशालय के रूप में दिसंबर 2008 में अपग्रेड किया गया। यह कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 22 पर समुद्रतल से 1500 मीटर की उंचाई पर शिमला से 45 किलोमीटर पहले है। उस समय के केंद्रीय कृषि मंत्री डॉ. जीएस ढिल्लन ने 21 जून 1987 को इस निदेशालय का औपचारिक उद्घाटन किया था।
यह निदेशालय मशरूम से संबंधित तमाम पहलुओँ पर अनुसंधान करने के लिए है। बुनियादी अध्ययन के अलावा, भिन्न किस्म के मशरूम के लिए खेती की तकनीक का विकास करने और देश भर में अनुसंधान का संयोजन करने पर फोकस है। इसके लिए इसके अखिल भारतीय संयोजित अनुसंधान कार्यक्रम केंद्र हैं। मशरूम जैसी गैरपंरपरागत फसल के लिए तकनालाजी के प्रभावी हस्तांतरण के लिए निदेशालय के तहत ये केंद्र आवश्यक प्रशिक्षण और इसके विस्तार के लिए काम करते हैं।
देश के मशरूम जर्मप्लाज्म का कैटलॉग बनाना, मशरूम की किस्मों में जेनेटिक सुधार और बेहतर पैदावार / उपज और गुणवत्ता के लिए तकनालॉजी को परफेक्ट बनाना मुख्य चिन्ताओँ में हैं। देश में मशरूम की संपदा के संग्रह, पहचान, कैटलॉगिंग और संरक्षण के लिए अक्सर देश भर में सर्वेक्षण किया जाता है। निदेशालय का राष्ट्रीय जीन बैंक इस सिलसिले में देश में मशरूम के जेनेटिक संसाधन का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। जर्म प्लाज्म को मोलिकुलर स्तर पर ही बांटा जा चुका है और इस तरह जो सूचना तैयार हुई है, का उपयोग कल्चर की सही पहचान और दोहराव को खत्म करने तथा विविधता से संबंधित विश्लेषण के लिए किया गया है। निदेशालय के जेनेटिक सुधार कार्यक्रम में मशरूम के बुनियादी जीव विज्ञानष भिन्न मशरूम की यौनिकता शैली, सिंगल स्पोर को अलग करना और मेटिंग का उनका व्यवहार तथा बेहतर ऊपज और मशरूम की गुणवत्ता के लिए अनुकूल संकरण शामिल है।
इसके अलावा, निदेशालय देश में मशरूम की खेती के विविधीकरण पर भी फोकस कर रहा है और यह कृषि तथा मौसम की स्थितियों के अनुसार होता है ताकि ऊर्जा की आवश्यकता कम हो और मशरूम की खेती का मौजूदा खेती प्रणाली में एकीकरण हो।
मशरूम की उच्च गुणवत्ता वाली बीज, जिसे स्पॉन कहा जाता है, तैयार करने के लिए कई अनुसंधान किए जा रहे हैं। उपयुक्त अधःआधार वाली सामग्री की पहचान, उसके पूर्व उपचार, संशोधन, संचारण भंडारण और परिवहन प्राचलों समेत स्पॉन तैयार करने के तरीके का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जा रहा है।
उच्च गुणवत्ता वाले और सस्ते कच्चे माल की पहचान, उनका पूर्व उपचार तथा थोक में इनकी हैंडलिंग के तकनीक कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनपर निदेशालय में सक्रिय अनुसंधान चलता है। निदेशालय ने बटन मशरूम के लिए पर्यावरण अनुकूल द्रुत कंपोस्टिंग का विकास किया है। खेती के प्राचल, केसिंग सॉयल इंग्रीडियंट्स (मिट्टी के अवयव) और खेती से संबंधित अन्य पहलुओं की विस्तार पूर्वक जांच की गई है।
कई अन्य मशरूम से संबंधित खेती की तकनालाजी का लगातार अनुसंधान किया जा रहा है ताकि देश के भिन्न राज्यों में मशरूम के विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। ओएस्टर मशरूम की खेती के लिए मुश्किल हॉट वाटर ट्रीटमेंट की जगह पुआल के रासायनिक स्टरलाइजेशन की तकनीक का विकास इस केंद्र में ही किया गया। ओएस्टर मशरूम के लिए पुआल के बल्क पैश्चराइजेशन की नई तकनीक का मानकीकरण कर दिया गया है। इसी तरह, मिल्की मशरूम की खेती के लिए ऐसी ही तकनीक का विकास किया गया है। इसके साथ अतिरिक्त यह है कि बैग केस में होते हैं।
मानकीकृत की गई कुछ अन्य तकनालाजियों में गेहूं के पुलाल पर ऑरीकुलेरिया, शीटेक और सिन्थेटिक लॉग्स पर गैनोडेमा, पैडी स्ट्रॉ के साथ कॉटन वेस्ट पर पैडी स्ट्रॉ मशरूम आदि की खेती शामिल है। गुजरे 2-3 दशक में निदेशालय ने कई अन्य मशरूम जैसे विन्टर मशरूम, पैडी स्ट्रॉ मशरूम हेरीसियम, मैक्रोसाइब, जीजेन्टम आदि के लिए भिन्न तकनालाजी का विकास किया है।
निदेशालय के विशेषज्ञ फसल चक्र पर निरंतर नजर रखते हैं। बीमारियों और कीटों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए नई तकनीक से संबधित अनुसंधान निरंतर किए जाते हैं और अगर कुछ नया मिलता है तो उसे किसानों के स्तर पर पहुंचाया जाता है।
निदेशालय फसल तैयार होने के बाद उनके प्रबंध जैसे कूलिंग, पैकिंग और प्रोसेसिंग पर अतिरिक्त ध्यान देता है क्योंकि मशरूम आमतौर पर बहुत कम समय तक ठीक रहते हैं। फसल तैयार होने के बाद हो सकने वाली हानि कम करने के लिए निदेशालय ने मशरूम के कई मूल्यवर्धित उत्पादों का भी विकास किया है।
निदेशालय के पास सभी आवश्यक उपकरणों से लैस अपने किस्म की अनूठी अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं। इनमें दो केंद्रीय प्रयोगशाला, क्रॉप प्रोडक्शन, क्रॉप प्रोटेशन लैब और मोलिकुलर जेनेटिक्स लेबोरेट्री भी है।
निदेशालय के पास प्रयोग आधार पर मशरूम के उत्पादन के लिए एक सुविकसित ढांचागत सुविधा है। कंपोस्टिंग यूनिट में आउटडोर कंपोस्टिंग यार्ड, फेज वन बंकर और बल्क पैश्चराइजेशन टनल शामिल हैं। क्रॉपिंग रूम (खेती के लिए उपयोग में लाए जाने वाले कमरे) में क्लाइमेट कंट्रोल के साथ एयर हैंडलिंग यूनिट से लैस है। इसके अलावा, निदेशालय में मॉडल क्रॉपिंग रूम भी है जो प्रदर्शन और प्रशिक्षण के उद्देश्य से मशरूम की मौसमी और पूरे साल होने वाली खेती में काम आता है। मशरूम उत्पादकों की आवश्यकताओँ की पूर्ति के लिए निदेशालय एक आधुनिक स्पॉन यूनिट भी चलाता है जो उत्पादकों को वाजिब कीमत में उच्च गुणवत्ता वाले स्पॉन मुहैया कराता है।
डीएमआर लाइब्रेरी में बड़ी संख्या में उपस्कर हैं और यह एचओआरटी-सीडी के जरिए सीडी रॉम डाटा सर्च और वैज्ञानिकों के लिए उनके डेस्कटॉप पर सीईआरए के जरिए भिन्न पत्रिकाओँ के लिए निशुल्क ऑनलाइन ऐक्सेस मुहैया कराता है। उत्पादकों और अनुसंधान करने वालों के बीच जानकारी बढ़ाने के लिए निदेशालय मशरूम पर भिन्न तकनीकी और एक्सटेंशन बुलेटिन प्रकाशित करता है।
निदेशालय का संग्रहालय मशरूम पर सूचनाएं रखता है। इसके लिए यहां नमूने, तस्वीरें, चार्ट ऑर मॉडल संरक्षित किए किए गए हैं। इंटरनेट के जरिए निदेशालय कृषि अनुसंधान सूचना सेवा से संबद्ध है और लोकल एरिया नेटवर्किंग के जरिए उपयोगकर्ताओँ को सूचना मुहैया कराता है।
निदेशालय में कैंटीन की अच्छी सुविधा है। इसके अलावा यहां आवश्यक सुविधाओँ से लैस ऑडिटोरियम, 50 बिस्तर वाला ट्रेनीज हॉस्टल और रीसोर्स पर्सन के लिए एक गेस्ट हाउस भी है।
प्रशिक्षण निदेशालय का एक प्रमुख घटक है और यहां किसानों, उद्यमियों और विषय के विशेषज्ञों के लिए हर साल कई ऑन एंड ऑफ कैम्पस प्रशिक्षण का आयोजन किया जाता है। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय - दोनों तरह के उम्मीदवारों के लिए है।
गांवों की आम जनता के बीच मशरूम को लोकप्रिय बनाने के लिए निदेशालय हर साल 10 सितंबर को मशरूम मेला का आयोजन करता है। इसमें नई विकसित तकनालॉजी का भी प्रदर्शन किया जाता है।
निदेशालय प्योर कल्चर, स्पॉन, मशरूम से संबंधित साहित्य, कंपोस्ट के लिए गुणवत्ता परीक्षण सुविधा, कंसलटेंसी, सुविज्ञ सलाह आदि भी मुहैया कराता है।
निदेशालय में 16 वैज्ञानिक, 14 प्रशासनिक, 14 तकनीकी और 10 सपोर्टिंग स्टाफ के मंजूर पद हैं।
चुनौतियों से निपटने के लिए निदेशालय के वैज्ञानिक और अधिकारी मिलकर काम करते हैं। निदेशालाय के कर्मचारी कल्याण कार्यक्रमों में आवास सुविधा के साथ-साथ कर्मचारियों के बच्चों के लिए परिवहन सुविधा शामिल है। कर्मचारियों में खेल भावना का विकास करने के लिए खेल गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
निदेशालय ने पिछले तीन दशक के दौरान मशरूम से संबंधित अनुसंधान और विकास के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और मशरूम को लोकप्रिय बनाने तथा इसकी खेती के बारे में जानकारी फैलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। नतीजतन भारत में मशरूम का उत्पादन 1980 में 3000 टन से बढ़कर अब एक लाख टन से भी ज्यादा हो गया है।
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