एक्सटेंशन रिफॉर्मस योजना अंतर्गत आत्मा के द्वारा आयोजित मशरूम उत्पादन पर दो दिवसीय प्रशिक्षण का शुभारंभ आत्मा सभागार में हुआ। इस अवसर पर जुड़े स्वयंसेवी संस्थाओं के तीस किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। इस अवसर पर रांची पलांडू स्थित हार्प शोध केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक डा. जेपी शर्मा ने उपस्थित कृषकों को ढिंगरी मशरूम उत्पादन की तकनीकी के बाबत बताया कि मशरूम उत्पादन का तकनीक ग्रामीण इलाकों में भूमिहीन किसानों तक पहुंच सकता है क्योंकि इसके लिए खेत की जरूरत नहीं होती है। इसे घरों के अंदर उगाया जाता है और इसमें लागत कम तथा लाभ अधिक होता है। मशरूम की खेती एक अंशकालीन या पूर्ण कालीन लाभकारी रोजगार हो सकता है। क्योंकि इसमें कृषि उत्पादन के व्यर्थ पदार्थ ही प्रयुक्त होते हैं। इसके आहार पौष्टिकता की तुलना मांस आहार की पौष्टिकता से की जा सकती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में मांग के हिसाब से इसकी पैदावार काफी कम है। भारत में मुख्य रूप से तीन प्रकार के मशरूम उगाए जाते हैं। पहला आयस्टर ढिंगरी मशरूम, दूसरा पुआल मशरूम और बटन मशरूम। इन मशरूमों की व्यवसायी खेती की विधि अलग-अलग होती है और इन्हें भिन्न-भिन्न तापमान की जरूरत होती है। उत्पादन दृष्टि से ढिंगरी मशरूम का विश्व में तीसरा और भारत में दूसरा स्थान प्राप्त है। उन्होंने बताया कि ढिंगरी मशरूम की खेती जुलाई से मध्य अपै्रल में 20 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 80 से 85 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता पर की जाती है। इसे सेलुलोज युक्त पदार्थ जैसे धान, गेहूं, जौ, बाजरा व मक्का आदि में से किसी का भूसा, सेम वर्गीय फसलों की सूखी डंठल, गन्ना का खोय व पुआल आदि पर उगाया जा सकता है। अनाज का भूसा अब तक सर्वश्रेष्ठ माध्यम पाया गया है। भूसा को स्वच्छ पानी में रात भर भींगा दें। अगली सुबह अतिरिक्त पानी निकाल दें। इसे उबलते पानी में डाल कर ठंडा होने के लिए दो से तीन घंटे तक ढक कर रखें। ऐसे भूसे में मशरूम का कवक फैलने में 20 से 25 दिन अधिक समय लगता है और बीज की ज्यादा मात्रा का प्रयोग किया जाता है। इस अवसर पर किसानों ने पुआल में मशरूम को कैसे बांधा जाए इसे लेकर किसानों ने विशेषज्ञ की उपस्थिति में प्रयोग भी किया। इस मौके पर उप परियोजना निदेशक अजीत कुमार, विषय वस्तु विशेषज्ञ जेनेट केरकेट्टा व नवीन कुमार वर्मा सहित अन्य आत्मा के कर्मचारी उपस्थित थे।
No comments:
Post a Comment