अब मशरूम (खुम्ब) का उपयोग कैंसर जैसी असाध्य बीमारी की रोकथाम में भी किया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन ने मशरूम की ऐसी प्रजाति उत्पादित करने में सफलता प्राप्त की है जो लगभग लुप्त हो चुकी थी। यह अनेक प्रकार के कैंसर की रोकथाम में सहायक हो सकती है। औषधीय महत्व की इस मशरूम प्रजाति को मंकी हेड मशरूम (हेरीसयम एरिनेकस) कहा जाता है। इसे गेहूं की भूसी की खाद में 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में उगाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में मशरूम सर्वेक्षण के दौरान एकत्र की गयी मशरूम फ्रुट बॉडी से टिश्यू कल्चर के जरिये इस नयी प्रजाति का विकास किया गया है।
अपेक्षाकृत गरमी वाले इलाकों में पैदा की जाने वाली इस मशरूम प्रजाति में देश के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध गेहूं की भूसी का इस्तेमाल किया जाता है जबकि विश्व के अनेक हिस्सों में इसका उत्पादन लकड़ी के बुरादे, गन्ने के खोई, कपास के बीज के छिलके या धान के तने को खाद के रूप में इस्तेमाल कर इसका उत्पादन किया जाता है।
निदेशालय ने गुलाबी रंग के सीप ओएस्टर मशरूम का विकास भी किया है। निदेशालय ने ओएस्टर मशरूम की खेती के लिये टनल पास्चरीकृत तकनालाजी तैयार की है। इससे टनल का कई कार्यों में इस्तेमाल हो सकेगा जबकि अभी तक इसे पस्चरीकृत बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट की अनुकूलता बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस तकनॉलाजी से ओएस्टर मशरूम की खेती का व्यवसायिकरण संभव हो सकेगा।
एक पोषक सब्जी के रूप में मशरूम के महत्व को अब पहले से ज्यादा समझा जाने लगा है। इसमें विटामिन बी-12, फोलिक अम्ल तथा विटामिन डी जैसे पोषक तत्वों के अलावा रेशेदार तत्व और पोटेशियम भी मौजूद हैं। इसमें कालेस्ट्रॉल भी नहीं होता है। कम केलोरी वाली यह सब्जी चिकनाई मुक्त है।
सत्तर के दशक में देश में मशरूम की खेती आरंभ होने के बाद से इसे विषम जलवायु वाले इलाके में भी पैदा करने के उपाय किये गये हैं। देश में पैदा होने वाले कुल मशरूम का आधा भाग निर्यात हो जाता है। भारत जैसे कृषि विविधता वाले देश में खेती से 60 करोड़ टन से अधिक कचरा निकलता है जिसका उपयोग अनेक प्रकार के मशरूम के उत्पादन में किया जा सकता है।
सोलन स्थित खुम्ब अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डा.मनजीत सिंह का मानना है कि देश में बेरोजगारी और कुपोषण की समस्या हल करने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने बताया कि पिछले दो दशकों में भारत में मशरूम उत्पादन 10,000 टन से बढ़कर एक लाख टन हो गया है। एक अच्छी बात यह है कि अब मशरूम का उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में ही सिमटा न रहा कर मैदानी हिस्सों, पूर्वोत्तर और देश के दक्षिण हिस्सों में भी होने लगा है। मशरूम उत्पादक किसान 250 वर्ग फुट क्षेत्र से ही 3,000 रु. प्रतिमाह की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसान शुष्क मशरूम, मशरूम के अचार और मशरूम का पाउडर तैयार करके भी अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
अपेक्षाकृत गरमी वाले इलाकों में पैदा की जाने वाली इस मशरूम प्रजाति में देश के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध गेहूं की भूसी का इस्तेमाल किया जाता है जबकि विश्व के अनेक हिस्सों में इसका उत्पादन लकड़ी के बुरादे, गन्ने के खोई, कपास के बीज के छिलके या धान के तने को खाद के रूप में इस्तेमाल कर इसका उत्पादन किया जाता है।
निदेशालय ने गुलाबी रंग के सीप ओएस्टर मशरूम का विकास भी किया है। निदेशालय ने ओएस्टर मशरूम की खेती के लिये टनल पास्चरीकृत तकनालाजी तैयार की है। इससे टनल का कई कार्यों में इस्तेमाल हो सकेगा जबकि अभी तक इसे पस्चरीकृत बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट की अनुकूलता बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस तकनॉलाजी से ओएस्टर मशरूम की खेती का व्यवसायिकरण संभव हो सकेगा।
एक पोषक सब्जी के रूप में मशरूम के महत्व को अब पहले से ज्यादा समझा जाने लगा है। इसमें विटामिन बी-12, फोलिक अम्ल तथा विटामिन डी जैसे पोषक तत्वों के अलावा रेशेदार तत्व और पोटेशियम भी मौजूद हैं। इसमें कालेस्ट्रॉल भी नहीं होता है। कम केलोरी वाली यह सब्जी चिकनाई मुक्त है।
सत्तर के दशक में देश में मशरूम की खेती आरंभ होने के बाद से इसे विषम जलवायु वाले इलाके में भी पैदा करने के उपाय किये गये हैं। देश में पैदा होने वाले कुल मशरूम का आधा भाग निर्यात हो जाता है। भारत जैसे कृषि विविधता वाले देश में खेती से 60 करोड़ टन से अधिक कचरा निकलता है जिसका उपयोग अनेक प्रकार के मशरूम के उत्पादन में किया जा सकता है।
सोलन स्थित खुम्ब अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डा.मनजीत सिंह का मानना है कि देश में बेरोजगारी और कुपोषण की समस्या हल करने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने बताया कि पिछले दो दशकों में भारत में मशरूम उत्पादन 10,000 टन से बढ़कर एक लाख टन हो गया है। एक अच्छी बात यह है कि अब मशरूम का उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में ही सिमटा न रहा कर मैदानी हिस्सों, पूर्वोत्तर और देश के दक्षिण हिस्सों में भी होने लगा है। मशरूम उत्पादक किसान 250 वर्ग फुट क्षेत्र से ही 3,000 रु. प्रतिमाह की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसान शुष्क मशरूम, मशरूम के अचार और मशरूम का पाउडर तैयार करके भी अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
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